आशुतोष सिन्हा
गढ़वा : एक वह वक्त था जब लोग नक्सलियों के दहशत में जीवन बसर किया करते थे. और एक आज का समय है जहां लोग जंगली जानवरों के ख़ौफ से खौफजदा हैं. हम बात झारखंड के गढ़वा जिले की कर रहे हैं, जहां लोगों के चैन व सुकून को जंगली जानवरों ने छीन लिया है. ख़ास रिपोर्ट
‘गांव में जानवर और पहाड़ पर गांव वाले’, जी हां कुछ इसी विषम हालात में पल-पल गुज़ार रहे हैं गढ़वा के लोग. आपको बताएं कि जिले के रंका, रमकंडा थाना क्षेत्र में जंगली जानवरों ने कहर बरपा रखा है. अभी कुछ दिनों पहले ही हमने आपको अपने ख़बर के जरिये दिखाया था कि एक महिला को उस वक्त एक बाघ जंगल की ओर उठा ले गया जब वो अपने घर में खाना पका रही थी. बाद में ग्रामीणों ने उस महिला का क्षत-विक्षत शव को पाया था.
इस घटना के दहशत से लोग अभी उबर भी नहीं पाय़े थे कि इसी बीच गांव में हांथी आ घुसे और आतंक मचाने लगे. अभी तक हाथियों द्वारा जहां एक तरफ़ दर्जनों गांव में ग़रीबों के खेतों में लगे फसल को रौंद डाला गया, तो वहीं उन्हें दर्जनों घरों को भी ध्वस्त कर दिया. शुरुआत में तो ग्रामीणों द्वारा खुद से हांथियों को भगाने का प्रयास किया गया. लेकिन कई लोगों को घायल किये जाने के बाद गांव वाले ख़ौफ़ज़दा हो गए. उनके सामने गांव छोड़ना ही एक विकल्प सामने आया.
आलम है कि जहां एक तरफ़ चौबीस घंटों में कई घंटे ग्रामीण भयवश अपना वक्त पहाड़ पर गुज़ार रहे हैं, तो वहीं उस गांव की बात कौन करे उन रास्तों पर भी जाने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पा रहा है. यहां तक कि ख़बर संकलन के लिए ना तो पत्रकार और ना ही हालात देखने प्रशासनिक अधिकारी ही वहां तक पहुंच पा रहे हैं.
जहां हर पल गांव वालों की सांस रुक जाने की स्थिति में आ रही है, वहीं संबंधित विभाग यानी वन विभाग के अधिकारी की माने तो वो हाथियों को गांव से बाहर भगाने और उन्हें गांव तक नहीं आने को ले कर रोकने की कोशिश में जुटे हुए हैं.
जंगली जानवरों द्वारा हताहत होने की स्थिति में मुआवज़े का प्रावधान निहित है लेकिन डर का कोई मुआवज़ा नहीं है. ऐसे में जिला प्रशासन के वरीय अधिकारी द्वारा मुआवज़े की बात दुहराना ऐसे मौक़े पर पूरी तरह बेमानी नहीं बल्कि काम के प्रति बेईमानी प्रतीत हो रहा है.
एक तरफ़ हाथियों के आतंक से आतंकित हो घर गांव छोड़ने पर मजबूर लोग, तो दूसरी ओर उन्हें जानवरों से बचाते हुए राहत देने को ले कर उनसे दूर वन विभाग और प्रशासन. ऐसे में सवाल उठता है कि बाघ द्वारा मारी गयी महिला का शव पा कर प्रशासन सतर्क नहीं हुआ. क्या उसे कार्रवाई करने के लिए एक नहीं दर्जनों ग्रामीणों के शव की ज़रूरत है...?