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इचाक में गरीबी, भुखमरी व बेरोजगारी का दूसरा नाम इको सेंसेटिव जोन

ग्रामीण का आरोप: वन विभाग और सरकार ने इन 218 गांव के लोगों के मौलिक अधिकार को छीन लिया है
इचाक में गरीबी, भुखमरी व बेरोजगारी का दूसरा नाम इको सेंसेटिव जोन
प्रशांत शर्मा/न्यूज़11 भारत 

हजारीबाग/डेस्क:-गरीबी, भूखमरी, लाचारी और बेरोजगारी का दूसरा नाम है इक्को सेंसेटिव जोन. दरअसल हजारीबाग वन आश्रयणी जो मूलतः इचाक प्रखंड के सीमा क्षेत्र में स्थित है, इसके उत्तर में पदमा प्रखंड, दक्षिण और पूरब में इचाक प्रखंड और पश्चिम में कटकमसांडी प्रखंड है. बता दें कि नेशनल पार्क का निर्माण 1955 में किया गया था. बाद के वषों में कुछ अहर्ताएं पूरी नहीं करने की वजह से इसे हजारीबाग वन आश्रयणी का दर्जा दिया गया. आज यही आश्रयणी यहां के लोगों की गरीबी का कारण भी बन गया है. बता दें कि आश्रयणी के बीचो बीच कई गांव है, जो आज भी कई मूलभूत समस्याओं से वंचित है. इस गांव के लोगों के लिए जंगली जानवरों का खौफ बना होता है. बिजली और मोबाइल टावर नहीं है. न पीडीएस दुकान है, न पक्की सड़क, और न ही स्वास्थ्य सेवाएं ही उपलब्ध है. ग्रामीणों के मुताबिक सिर्फ एक गांव कईले ही इको सेंसेटिव जोन के अंदर है लेकिन यह सुविधाविहीन है. जब 72 गांव के कुछ हिस्सों को शामिल किया गया था, उस समय क्षेत्रफल 186.25 वर्ग किलोमीटर और रकबा 18625.50 हेक्टेयर था. परंतु अब जब 218 गांव को इक्को सेंसेटिव जोन के अधीन कर लिया गया तो इसका क्षेत्रफल बढ़कर 573.86 वर्ग किलोमीटर और इसका रकबा 57387.54 हेक्टेयर हो गया. इचाक, कटकमसांडी, पदमा, टाटीझरिया और बरकट्ठा के 218 गांव पूर्ण रूप से इको सेंसेटिव जोन के अधीनस्थ कर लिया गया है. अब उन गांव में बेरोजगारी, गरीबी और भूखमरी की लंबी तादाद हो गयी है. क्योंकि इको सेंसेटिव जोन के अधीनस्थ गांव वन विभाग के दायरे के अंदर आते हैं. यहां अपनी स्वेच्छा से ना तो आप फैक्ट्री लगा सकते हैं, ना घरेलू उद्योग और ना ही पेयजल के लिए चापानल का निर्माण करा सकते हैं. ग्रामीण आरोप लगाते हैं कि वन विभाग और सरकार ने इन 218 गांव के लोगों के मौलिक अधिकार को छीन लिया है. यही वजह है कि इचाक प्रखंड के डुमरौन, तिलरा, भूषवा, साड़म, टेपसा, सिजुआ, इचाक मोड़ और बोंगा जो क्रशर नगरी के नाम से जानी जाती थी, आज मरूभूमि के समान दिखने लगी है. लोग कहते हैं कि इन्ही क्रशर उद्योग की वजह से इचाक विकसित प्रखंड के रूप में उभरता जा रहा था. गरीब व मध्यम वर्ग के लोग जिन्होंने बैंक और महाजनों से कर्ज लेकर क्रशर लगाया था, उनके सामने पहाड़ सी मुसीबत खड़ी हो गई है. एक तरफ कर्ज चुकाने की चिंता है तो दूसरी तरफ बच्चों को पढ़ाने की. वहीं कई के समक्ष बिटिया के हाथ पीले करने की चिंता है. कहा कि सरकार के इस फैसले से उनका भविष्य अंधकारमय में हो गया.

 

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