कृपा शंकर/न्यूज़ 11 भारत
बोकारो/डेस्क:-देश ने इन दिनों आजादी का 75वां वर्षगांठ अमृत महोत्सव के नाम पर धूमधाम से मनाया. वहीं, राज्य गठन के 23 वर्ष पूरा कर झारखंड ने भी यौवन अवस्था को छू लिया. दोनों ही मामलों में उत्साह और उमंग के लिए जश्न के नाम पर बेहिसाब खर्च भी किया गया. लेकिन विकास का ढिंढोरा पीटने वालों की नज़र शायद अरालडीह पंचायत अंतर्गत बनचास के सेकरेगोड़ा तथा चाट्टीगोड़ा बस्ती तक नहीं पहुंच सकी. इस कारण इन दोनों बस्तियों में पहुंचने का मार्ग नहीं बन सका. बात हो रही है, बोकारो जिला के बेरमो विधानसभा सह गिरीडीह लोकसभा क्षेत्र स्थित जरीडीह प्रखंड के अरालडीह पंचायत के बनचास गांव के दो मोहल्ले की.
चाट्टीगोड़ा मोहल्ले में पीसीसी लेकिन मोहल्ले तक कच्चा है डगर-
अरालडीह पंचायत के बनचास गांव का मोहल्ला है, चाट्टीगोड़ा. चाट्टीगोड़ा की आबादी करीब 20-25 है. इस मोहल्ले में पीसीसी सड़क है. लेकिन मोहल्ले की सड़क तक जाने के लिए सड़क नहीं है. गांव के मुख्य सड़क से करीब 100-150 मीटर की दूरी आपको बिना सड़क ही जाना होगा. जिस मार्ग से ये लोग प्रखंड मुख्यालय या बाजार करने जैनामोड़ आते-जाते हैं, वो करीब 2-4 किलोमीटर तक कच्ची है. यह मार्ग इस मोहल्ले के मुहाने से खेत, जंगल, झांडी होकर बाराडीह पंचायत स्थित कस्तूरबा विद्यालय होकर एनएच 23 तक पहुंचाता है. बिनीराम टुड्डू, कपूरमुनी देवी तथा फूलमनी देवी ने बताया कि कई बार सांसद व विधायक को कस्तुरबा मार्ग बनाने को कहा गया. लेकिन आज तक इसके लिए किसी ने पहल नहीं की.
सेकरेगोड़ा की पगडंडी पर आकर अटक गया विकास, बस्ती तक नहीं पहुंची सड़क-
बनचास ग्राम का ही एक अन्य मोहल्ला है सेकरेगोड़ा. इसका तो हाल और भी बुरा है. इस बस्ती में करीब 20 घर है. बस्ती में करीब 50-60 की आबादी है. इस बस्ती में जाने के लिए दो तरफ से रस्ता है. लेकिन दुर्भाग्यवश एक भी रास्ता आज तक सड़क का स्वरूप नहीं ले सका. निवारण मांझी, फुलेश्वर हांसदा, दुर्योधन, गुआ देवी, सूरजमनी देवी, बैजनाथ, भोला आदि ने बताया कि चुनावी मौसम में नेता जी लोग आते हैं. हम लोग वर्षों से हर विधायक, सांसद प्रत्याशी से अपने बस्ती तक सड़क निर्माण कराने की गुहार लगाते हैं. नेता जी लोग मुस्करा कर आश्वासन देकर चले जाते है. फिर चुनाव आता है फिर ये सिलसिला दोहराया जाता है. कहा कि चुनाव के समय रास्ता बनाने का वादा कर नेता लोग हमारे बस्ती का रास्ता ही भूल जाते है.
रास्ता, शिक्षा की व्यवस्था, पीएम आवास आदि नहीं मिला तो वोट देकर क्या करेंगे-
बहू प्रेमलता ने बताया कि बारिश के मौसम में सबसे ज्यादा परेशानी होती है. फिसलन भरी जमीन हो जाती है. ऐसे में बस्ती में आने-जाने से पहले कई बार सोचना पड़ता है. विकास के नाम पर गांव में बिजली जरूर पहुंची है. एक डेढ़ माह पूर्व बस्ती के बाहर शिखर में एक चापानल लगा है. जबकि यहां के ग्रामीणों को पीएम आवास तक नहीं मिल पा रहा है. आंगनबाड़ी केंद्र दूसरे बस्ती में है, वहां जाने के लिए भी पगडंडी का रास्ता है. बस्ती से दूर होने के कारण बस्ती के बच्चे वहां नहीं जाते. कहा कि इस बार हमारी मांगों पर अमल नहीं किया गया तो वोट देने का कोई मतलब नहीं बनता.