सुरेन्द्र कुमार/न्यूज़11 भारत
गुमला/डेस्क:-सिसई प्रखण्ड स्थित निजी विद्यालयों में पिछले कई वर्षों से किताबो को बदलने का खेल चल रहा है,निजी विद्यालयों में एन.सी.आर.टी.पुस्तकों के बजाय निजी पब्लिकेशन के पुस्तक पढ़ाये जा रहे है. कमिशन के फ़ेर में इन पुस्तकों को प्रत्येक वर्ष बदल दिया जा रहा है, जिससे अभिभावक परेशान है ,उन पर हर वर्ष नयी पुस्तक खरीदने का बोझ बढ़ रहा है,पुरानी किताबें रद्दी का ढेर बन रही है, हर वर्ष पुस्तके बदलने से तीन चार विद्यार्थियों वाले घर के अभिभावक ज्यादा परेशान है ,जिनके घरों में अगली कक्षा के पुस्तक पड़े हुए है पर उन्हें फिर से सारी किताबें खरीदनी पड़ रही है,यही नहीं इन पुस्तकों के मूल्य भी इतने अधिक है, कि आम अभिभावक के लिए बच्चों को निजी स्कूल मे पढ़ाना लोहे के चने चबाने जैसा महसूस हो रहा है,जहाँ एक ओर एन. सी. ई. आर. टी. की पुस्तकें किसी भी कक्षा की पूरी सेट एक हजार रुपये के करीब बाजारों में मिल जाती है, वहीँ निजी पब्लिकेशन की पुस्तकें पाँच हजार से छह हजार की सेट खरीदना अभिभावकों की मजबूरी बन गई है क्योंकि सत्र प्रारम्भ होने से पहले ही निजी विद्यालय छात्रों को पुस्तकों की लिस्ट प्रकाशक के नाम व मूल्य के साथ थमा देती है और ये भी बता दिया जाता है,कि उक्त पुस्तके अमुख दुकान में ही मिलेंगी एक निजी विद्यालय की पुस्तक सिर्फ उसी दुकान में मिलेगी जहां से उक्त विद्यालय की सेटिंग है यही नहीं कुछ निजी स्कूल तो स्कूल से ही पुस्तक,स्कूल ड्रेस, जुता-मोजा,आदि की बिक्री ऊँचे मूल्य पर कर रहे है.
इस सम्बंध में एक पुस्तक दुकानदार ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि निजी स्कूल 50 प्रतिशत तक कमिशन पहले ही ले लेते है तब जाकर उन्हें आपूर्ति का ऑर्डर देते है,जिस कारण वे अभिभावकों को कोई छुट नहीं दे पाते बर्तमान में सिसई मे संत मैरिज स्कूल सिसई, नेशनल पब्लिक स्कूल सिसई, लिटिल फ्लावर स्कूल सिसई, रोस इन्टर नेशनल स्कूल, मिललत चिल्ड्रेन अकेडमी, ईमानुएल इंग्लिश मीडियम,संत मोनिका कुम्हार मोड़, माउंट ओलिव पिलखी मोड़, संत जेवियर स्कूल रोशनपुर,प्रयाण पब्लिक स्कूल, कार्तिक उरांव बाल विकास विद्यालय, संत थॉमस स्कूल बाँस टोली,भास्कर एकेडमी, एवं इंडियन माडल टंगरा टोली स्कूल सहित लगभग 20 निजी विद्यालयों में लगभग पाँच हजार बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं,इन विद्यालयों में से इक्का-दुक्का को छोड़ शेष सभी विद्यालय हर वर्ष सारी की सारी पाठ्य पुस्तकों को बदल रहे है,परिणाम यह हो रहा है कि इन विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चे हर वर्ष दो-तीन करोड़ की पुस्तकें खरीद रहे है इसमें से आधी राशि स्कूलों को कमिशन के रूप मे मिल रही हैं,निजी विद्यालयों के इस खेल से प्रत्येक वर्ष करोड़ों रुपये मूल्य के पुस्तक रद्दी के रूप मे तब्दील हो रहे हैं जिससे राष्ट्रीय सम्पति एवं पर्यावरण दोनों को नुकसान हो रहा है,साथ ही शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 का भी उल्लंघन हो रहा है, तथा अभिभावकों के जेब पर अतिरिक्त बोझ भी पड़ रहा है.इस पूरे खेल की जानकारी शिक्षा विभाग को भी है परन्तु शिक्षा विभाग इस मामले में तमाशबीन बनी हुई है.
इस सम्बंध में पूछे जाने पर, प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी किरण देवी ने कहा, कि प्रत्येक वर्ष पुस्तकों को बदलना गलत है,वे इस मामले में उच्चाधिकारियों से दिशा निर्देश लेकर कार्यवाई की जाएगी.