रांची : झारखंड की राजधानी रांची में तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का आगाज हुआ. आड्रे हॉउस में आयोजित इस अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में 7 दूसरे देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया. अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार को संबोधित करते हुए जहां राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू ने आदि दर्शन पर विस्तार से प्रकाश डाला, वहीं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ग्लोबल के भूख में आदिवासी समूह के लूटे जाने की ओर आगाह किया.
रांची के आड्रे हॉउस में तीन दिवसीय अंतराष्ट्रीय सेमिनार का आगाज आदिवासी संस्कृति, परम्परा, इतिहास और भविष्य की संभावनाओं से साथ हुआ. आदि दर्शन पर केंद्रित इस सेमिनार में देश के अलग-अलग राज्यों के अलावे 7 दूसरे देश के प्रतिनिधि भाग ले रहे है. स्विट्जरलैंड, केनिया, इंडोनेशिया, स्वीडन, रशिया, बंगलादेश और कोपेहेगन से आये प्रतिनिधि आदिवासी समाज और उसके इतिहास पर देश के प्रतिनिधियों के साथ अपने विचार साझा करेंगे. उद्घाटन सत्र को संबोधित करते मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ना सिर्फ झारखंड और भारत, बल्कि दुनिया भर में आदिवासी समाज के वर्तमान स्थिति को मजबूती के साथ रखा. हेमंत सोरेन ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि इस तरह के आयोजन तीन दिवसीय ही नहीं हमेशा होते रहना चाहिये.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आदि दर्शन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि दुनिया भर के 90 देशों में 37 करोड़ आबादी आदिवासी समाज की है. 5 हजार संस्कृति और 40 हजार भाषाएं इसकी अपनी स्वतंत्र पहचान है. आदिवासी समाज दुनिया की आबादी का लगभग 5 प्रतिशत है, बावजूद इसके आज के इस ग्लोबल भूख में ये समूह लुट रहा है. उन्होंने कहा कि मोहनजोदड़ो के ज़माने की मिट्टी के बर्तन से लेकर हथियार तक का इस्तमाल आज के ज़माने में भी इसी समाज में देखने को मिलती है. ऐसा इस लिये क्यूंकि आदिवासी समाज अपनी संस्कृति और इतिहास को सीने से लगाये फिरती है.
राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू ने सेमिनार में अपने संबोधन की शुरुआत आदि दर्शन के विश्लेषण से शुरू किया. उन्होंने कहा कि इसे कभी खुले, तो कभी कभी बंद आंखों से महसूस किया जा सकता है. दर्शन शास्त्र पर बोलते हुए राज्यपाल ने नास्तिक और आस्तिक दर्शन के बीच फर्क को समझाया. द्रौपदी मुर्मू ने आदिवासी समाज का प्रकृति के साथ प्रेम और उसके लगाव को भी अदभुत बताया. उन्होंने कहा कि आदिवासी को झूठ बोलना नहीं आता और अगर वो बोलते है तो पकड़े जाते हैं.
रांची के आड्रे हॉउस में अगले दो दिनों तक आदि दर्शन पर ये अंतराष्ट्रीय सेमिनार जारी रहेगा. उम्मीद है कि इस सेमिनार में दूसरे देशों से आये प्रतिनिधियों से आदिवासी समाज के अस्तित्व पर हो रहे ग्लोबल हमलों से बचने के कुछ उपाय सामने आएंगे. ये सेमिनार ऐसे वक्त में हो रहा है जब अंतराष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी समाज को बचाने और बढ़ाने की आवाज बुलंद हो रही है.